![]() 14th September 2003
“एक
ओंकार
सतिगुरू
प्रसादि ” “
काहे रे बन
खोजन जाई । सरब
निवासी सदा
अलेपा तोहि
सिंग समाई ।
रहाउ । पहुप
मधि जिऊ बासु
बसतु है मुकर
माहि जैसे छाई
। तैसे
ही हरि बसे
निरंतर घट ही
खोजहु भाई । बाहरि
भीतरि ऐको
जानहु इहु गुर
गिआन बताई । जन
नानक बिनु आपा
चीनै, मिटै न भ्रम
की काई । (684) ”
- पाठी
माँ साहिबा FURTHER
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